Tuesday, 8 November 2016

गुड्डू का दर्द


आज फिर से गुड्डू परेशान था | उसकी चिर परिचित आँखे मानो अपने आप से शिकायत कर रही हो |

                    मैं दूर से समझने की कोशिश कर रहा था | आखिर क्या हैं जो उसे परेशान किये जा रही हैं|

आज उसकी आँखे कुछ  सी थी कुछ नम, आज फिर उसको तकलीफ हुई  हैं | लेकिन इस बार माजरा कुछ और हैं | इस बार शायद उसे तकलीफ हैं अपने से |

मुझसे रहा गया और मैंने पूछ ही लिया, क्या बात हैं क्यू परेशान हो | बजाय जवाब देने के उसने उलट कर पुछा |

अच्छा एक बात बताओ तुमको अगर सिचुएशन दिया जाय, जिसमे तुम सिर्फ या तो अच्छे  बेटे बन सकते हो या अच्छे बाप, फिर तुम क्या करोगे ?

मैंने बहुत सोच कर बताया की मैं तो अच्छा बाप बनना पसंद करूंगा |

फिर उसने बताया की आज उसने उल्टा किया हैं, उसने अपने तीन साल के  बच्चे किया वादा तोड़ दिया, ताकि वो एक अच्छा बेटा बन सके, अब उसका तीन साल का बच्चा पूछ रहा हैं की पापा आपने वादा क्यू तोडा तो मेरे पास कोई जबाब नहीं हैं |

मैं उसके तकलीफ का कारण समझ गया था, मैंने ज्यादा पुछा नहीं |

मेरे मन में अचानक से सारी याद ताजा हो गयी, उसने अपने बच्चे के पहले जन्मदिन पर भी ऐसा ही किया था |

मैं रिश्तो के जाल में उलझता जा रहा था , मैं समझ नहीं पा रहा था की आखिर शादी से पहले के रिश्ते नए रिश्तो की अहमियत क्यू नहीं समझते, हमेशा ऐसा परिश्थिति पैदा क्यू करते हैं जिससे या तो ये या वो वाली नोबत आती हैं | एक लड़के के साथ हमेशा गलत ही क्यू होता हैं उसको हर रिश्तो को सही से निभाने का मौका मिलना चाहिए |

मुझे उसकी ही एक घटना याद गयी जिसमे ससुराल वालो के उसके घर पर पहली बार आने पर किया गया कोई प्रोग्राम उसने कैंसिल किया था |

जिंदगी में मैक्सिमम पॉसिबिलिटी के लिए जरूरी हैं की दूसरे तरफ की बातो को समझने की कोशिश की जाय |

मुझे नहीं समझ रहा था बेटे से लोग दुश्मनी क्यू निकलते हैं , उनको क्यू ये समझ नहीं आता दोनों में से एक चुनने में उनका अपना ही मरता हैं |

मुझे अक्सर ये शिकायत रहती हैं उससे वो बोल क्यू नहीं देता ये मुझसे हो पायेगा ||

मुझे समझ रहा था लोग बेटे को टेस्ट करते रहना चाहते हैं कही बदल तो नहीं गया, बदल जाने पर शिकायत करते हैं, बागवान मूवी के अमिताभ के " टूटे फूटे बर्तन " के तरह |

यही रिश्तो की कसमकश हैं ऐसा सोच मैं सिगरेट जलाने लगा था |

Monday, 28 March 2016

गुड्डू का पुल

आज गुड्डू बड़ा परेशान सा था, आज फिर से सेटमैक्स "बागवान" मूवी आ रही थी । मानो उसीमे वो भी जी रहा था। वो टूटे फूटे बर्तन, वो सीढ़ी वाला डॉयलॉग उसे चुभता जा रहा था। 
मुझे उसकी ये हालत देखी नहीं जा रही थी, मैंने पूछ  ही लिया। तुम अपने  को पहले की पीढ़ी में पाते हो या आज की प्रैक्टिकल पीढ़ी में पाते हो। 
वो बड़ी देर तक मुझे घूरता रहा,शायद जबाब सोच रहा था या जबाब देने की उसकी इक्छा  नहीं थी। कुछ देर सोचने के बाद वो बोला की मैं अपने को पूल की तरह पाता हूँ। मैं समझ नहीं पाया, ये पूल का क्या मतलब हैं ?
जिंदगी दो किनारों के बीच चलती हैं , एक किनारा शादी से पहले का एक शादी के बाद का । कोई भी किनारा टुटा तो समझो जिंदगी का तारतम्य टूट जाएगा । 
उसने समझाया तो मैंने सर हिला दिया। 
आगे वो समझाने लगा की दोनों किनारों के बीच एक बड़ा सन्नाटा हैं। दोनों किनारे  आपस में उचाई नापते हैं और सोचते हैं  की उसे उसके होने का महत्त्व सामने वाला किनारा समझता क्यों नहीं हैं। शायद एक दूसरे के होने की वजह से दोनों अनमने हैं। शायद कोई किनारा छूटकारा चाहता हैं इस तानेबाने को संभाले रखने में । 
मैं थोड़ा न समझने के भाव से पूछा की तुम कहा हो, क्या तुम नदी रूपी जीवन हो?
उसने मुस्कुराते हुए जबाब दिया मैं नदी कैसे हो सकता हूँ वो तो जीवन हैं जिसे "मैक्सिमम पोसिब्लिटी" की ओर जाना हैं वो सबको निरंतरता प्रदान करती हैं । 
मैं तो वो पूल हूँ जो दोनों किनारों के बीच संवाद करता हैं  ताकि जीवन की निरंतरता चलती रहे। 
मैं अब समझ रहा था उसकी बातो को, मैंने उससे आगे पूछा की पूल की क्या जरूरत हैं, किनारे तो कही आ जा सकते नहीं । 
वो चुप सा हो गया, वो सोच रहा था संवाद की जरूरत सही में हैं क्या, संबाद कर के दूसरे किनारे की जरूरत को समझाया जा सकता हैं क्या? ये पूल क्यों दोनों के अनमने पन का शिकार हो? पूल पर ये आरोप हमेशा लगता हैं की वो दूसरे किनारे की तरफ जयादा झुका हैं । क्या पूल बिच से टूट जाय तो चलेगा क्या ? पूल का जो भाग जिस किनारे से लगा हैं वो उस किनारे का, किस्सा ही खत्म । लेकिन जीवन की निरंतरता खतरे में पर सकती हैं |

क्या पूल  दो भागो में टूटे तो पूल को दर्द नहीं होगा, पर किनारे को उस दर्द का एहसास कैसे हो सकता हैं । और  ये दर्द का जिम्मेवार कोन हैं, गलती तो पूल की हैं की वो दोनों किनारे की सन्नाटो को मिलाने चला था, दोनों किनारों को मिलाने चला था, भला ये मुंकिन हैं क्या । 
 मैं देख रहा था गुड्डू लगातार सोच के सागर में गोता लगाए जा रहा था, मैं सोच रहा था की वो सचमुच पूल को बिच से तोडने की बात तो नहीं सोच रहा। लेकिन मैंने उससे पूछा नहीं। 
 मैंने देखा की तकलीफ उसके चेहरे पर उभर कर आ रही हैं शायद आँखे भी नम हैं, पर ये क्या उसकी आँखो में तो बदले का भाव आ रहा था । 
मैं मुस्कुराने लगा पूल भला किनारों से कैसे बदला ले सकता हैं, मैं मुस्कुराते हुए अंजाम सोच रहा था "किनारों से बदला लेने की चाहत में जगह जगह से टुटा पूल"। 
मैंने उसके चुपी को तोड़ने के लिए अगला सवाल पूछा । 
ये आज कल की प्रैक्टिकल पीढ़ी पहले की तरह पिछले पीढ़ी की तरह क्यों नहीं सोचती ये सबको यूज़ एंड थ्रो क्यू करती हैं ?क्या प्यार कम हो गया हैं ?
उसने जोर से बोला  नहीं..... ऐसा नहीं हैं इसका कारण लोगो की जरूरतों का बढ़ना हैं और इसकी कीमत सबसे जयादा पिछली पीढ़ी को चुकानी पर रही हैं । 

उसकी आँखों में परेशानी के भाव साफ़ देखे जा सकते थे । पर वो शांत था, पता नहीं क्या था उसके मन में, शायद कोई सोलुशन सोच रहा था । 

मैं उसे उसकी हाल पर छोडते हुए " बागवान"  मूवी  का मजा लेने लगा था ।  

Sunday, 6 December 2015

ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ़ गुड्डू !!!!

मैंने आज उसको फिर देखा, कुछ बदल सा गया हैं वो, दूर से मुझे लगा की भ्रम हैं। मैं सोचने भी लगा था वो हैं की नहीं। बालो में सफेदी की बूंदा - बांदी  हो गयी हैं, थोड़ा ज्यादा उम्र दराज लग रहा था। मैं उसके उम्र का हिसाब लगाने लग गया फिर मुझे याद आया अभी हाल तो उसकी शादी थी  यही कोई ३ - ४ साल पहले, मैं पुरानी यादो में खो सा गया। मैं शायद उसका सबसे अजीज था, वो हर चीज बताने मेरे पास ही तो आता था। आज वो इतना बदला - बदला सा क्यों दिख रहा हैं।  एक बार तो मैंने सोचा भी चलो अनदेखा कर देते हैं।
शायद बहुत अमीर हो गया हैं।  एक दोस्त बता रहा था उसके बारे में पैसे वाला हो गया हैं।  मेरे  अंदर उससे जलन भी हुई थी। उसके घर वाले तो उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे। लेकिन वो इतना खुश  क्यू  नहीं दिख रहा। मुझे समझ नहीं आ रहा था एक अजीब सी कसमकस थी आँखों में, शायद कुछ ढूंढ रही थी उसकी आँखे, क्या ढूंढ रहा था वो ! शायद कोई अपना ढूंढ रहा था।  बहुत सारी कश्मकश !!! मैंने अपने दिमाग को झिरका, मैं अपने आप से चिढ सा गया मैं इतना सोचता क्यों हूँ।

तभी मैं देखा वो मेरी तरफ बढ़ा चला आ रहा हैं।  मैं ठिठक गया, वो नजदीक आ रहा था।  चेहरे से एक अजीब सा सूनापन नजर आ रहा था, थोड़ा उसका शरीर भी  बेडौल नजर आ रहा था। आ ते ही मैंने उसके अमीरी की दुहाई देते हुए उसे छेड़ा। वो शांत भाव से मेरी आँखों में देखने लगा। मैं सहम गया।
उसकी चिरपरिचत आँखे मुझे घूर रही थी। मानो मुझमे कुछ ढूंढ रहा हो, शायद वो अपना  दोस्त ढूंढ रहा था, मैं अंदर से डर सा गया।
मैंने सोच लिया था की मुझे उसके ड्रामे का हिस्सा नहीं बनना, साले ने शादी में पूछा तक नहीं था, बीवी मिली तो भूल ही गया था।
वो शांत भाव से  मुझे पढ़ रहा था। मैंने रोका उसे उसकी ये बड़ी बुरी आदत थी अंदर झाकने की, पूछा की क्या हैं तुम अभी भी  
    नहीं बदले। आखिर तुम को क्या चाहिए अपनेआप  से सब कुछ तो हैं तो ऐसा अनमनापन क्यू।  बड़ा ही अजीब सा जबाब दिया उसने बोला की ये सब जो देख रहे हो ये दूसरे के लिए हैं।
मुझे तो बस..........कह कर चुप हो गया। श्याद शब्द ढूंढ रहा था, थोड़ी देर शांत रहने के बाद बोला की मैं ढूंढ रहा हूँ की मुझे क्या चाहिए।
मैंने प्रतिबाद किया, ये कुछ समझ नहीं आ रहा आखिर सब कुछ तो हैं तुम्हारे पास, और क्या चाहिए।
वो मानो मुस्कुराते हुए बोला की उसे maximum possibility    चाहिए। वो अपने को cause एंड effect से अलग करना चाहता था। मैंने उसका मतलब पूछा, तुम खुश या दुखी किसी कारण से होते हो। ये कारण  को ही हटाना हैं।  यही कारण हमे  Maximum possibility से रोकती हैं।
मैंने अपना सर पीट लिया मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था फिर भी मैंने पूछा  और ये कारण को कैसे हटा सकते हैं। वो बोला की तुम किसी से अपने को मत जोरो यू शुड नोट identify विथ एनी थिंग।  पैसा, घर,परिवार, समाज, देश, धरम, जाति। सब में involve रहो लेकिन ये तुम्हे छू न पाये, तब जाकर तुम maximum possibility पा सकते हो।
मैंने झुंझलाते हुए पूछा आखिर     maximum possibility क्यू  चाहिए !!!! उसने उत्तर नहीं दिया.......... कुछ बताते बताते रह गया.........  श्याद वो एपीजे कलाम  जैसा कुछ बनना चाहता था...... मैं मन ही मन उसकी मूर्खता हस रहा था।
मैंने बात बदला और सिगरेट जलायी..........    और जलते सिगरेट को देख कर सोचने लगा.........जिंदगी में भी जलती सिगरेट की तरह तीन  चीज तो हैं....... नसा (यानी ताकत), identify ( तम्बाकू का नेचर),टाइम ( उसका बुझ जाना)।
कोई maximum possibility कैसे ला सकता हैं ।
मैंने उससे हाथ मिलाया और चलने लगा।  मैं सोच रहा था इस बेबकूफ को कोन समझाए जो हैं उससे भी हाथ धो बैठेगा, इसकी बीबी को इसको समझ पाना बहुत मुस्किल होने वाला हैं ।

Monday, 2 January 2012

मेरे बचपन का दोस्त.... गुड्डू !!

आज बहुत दिनों के बाद वो मिला था ....उसकी देखने की आदत बड़ी अजीब हैं... चीजो को निर्विकार भाव से देखना उसे अच्छा लगता हैं, बचपन से..आज भी नहीं बदला, मुझे उसका घुरना  बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था.वो आँखे बहुत बोलती हैं ....लेकिन  मैं ही तो था जो उसे जानता था !!
मुझे याद हैं जब मैं और वो जब मेला देखने निकले थे तब वो कितना खुश था..उसकी हसी छुपाये नहीं छुपती थी... एक अजीब सा जूनून था उसके अन्दर ..दुनिया को मुट्ठी में मानता था......अब लोग उसे लायक जो समझने लगे थे...उसके जेब में पैसे थे...जयादा नहीं...लेकिन  उसके हिसाब से बहुत...मैं उसकी हालत देख कर मुस्कुरा देता था...लकिन मैं कुछ बोलता नही था..मुझे उसके आत्मविश्वास को देख कर अच्छा लगता था !!
हम लोग साथ में मेले का आनंद उठा रहे थे... लोगो से मिलना, तरह तरह की चीजे देखना उसे बहुत पसंद था..!!
तभी अचानक उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी !! मेले में लड़की....!! शायद उदास हैं या रो रही हैं....!! क्या हुआ उसे...!! क्यू रो रही हैं.... एक कौतुहल !! वो उसके पास चला गया... मैंने रोका भी... छोड़ न यार... होगा कोई कारण अपने को क्या !! लेकिन  नहीं उसे अपने पर बहुत आत्मविश्वास था न... मेरी बात बिलकुल भी नहीं सुनी !! मैं दूर से देख रहा था उस लड़की को.... ढेर सारे चादर में उसने  अपने को लपेट रखा  था ..मुह भी ढक रखा था अपना !! कुछ दीखता नहीं था !!

थोड़ी देर में वो कुछ उलझा हुआ सा मेरे पास आया....मैंने अनमने ढंग से पूछा क्या हुआ...उसने बोला वो तो अपने साथ स्कूल वाली लड़की हैं.... अरे... वो जो  पढने  में बहुत अच्छी थी..!! हाँ सारे लड़के उससे जलते थे...सबसे तेज थी लडकियों में...!! अरे नाम याद आया...मैं समझ गया ये म....ममता की बात कर रहा हैं ...हम्म!!मुझे याद आ गयी स्कूल की बाते..... मैं भी उसे जानता था... थोडा उससे डरता भी था..देखने में साधारण थी....लेकिन उसके पीछे पीछे चलने में मुझे भी  बड़ा मजा आता था....मैं साईकिल से उसके  पीछे चलता रहता था.....वो पैदल, मैं साईकिल से .....कितनी बार इसके लिए उस लड़की ने  मुझे गाली भी दी थी...!!

मैंने उसे  जोर डाटते हुए पूछा .......हाँ तो !!!! सबका ठेका लिया हैं तुमने... वो उदास हैं तो तू  क्या कर लेगा !!
वो बोला..चल न यार देखते हैं....लोगो के चेहरे पर मुस्कराहट लाने का नाम ही तो जिन्दगी हैं...पता नहीं  कैसे मैं भी उसके पीछे चल दिया...शायद कुछ था उसमे ख़ास !!
मैं थोड़ी दुरी बना कर उसके साथ चल रहा था....ये क्या.... लड़की को पता नहीं उसने क्या कहा लड़की उसके साथ चल दी...!!
वो बता रही थी...उसे  जिन्दगी को अपने दम पर जीना हैं..!!मैं मुस्कुरा रहा था... सोच रहा था...ये लड़की जिसने अपने को कभी लड़के से कम नहीं समझा...उसके साथ तो होना ही था... लोग अक्सर मेहनती लडकियों के साथ  ऐसा ही करते हैं... उसे झूठा दिलासा दे देते हैं...लड़का होने का...फिर उसकी कमाई खाते रहते हैं...फिर जब लड़की को अपने लड़की होने का अहसास होता हैं तब तक देर हो चुकी होती हैं!!
गुड्डू... जो अबतक  उसकी  सारी बातें  सुनने में मशगुल  था... मैंने उसे अकेले में ले जा कर समझाया...यार समझ!! ये तेरे बस का रोग नहीं हैं...तुझे तो लडकियों से बात करनी भी नहीं आती...तू नहीं कर पायेगा...लेकिन वो माना नहीं...!!
फिर अचानक  किसी बात पर बात पर उसका झगडा !! बातचीत बंद !! सब अपने अपने रास्ते !! मैं समझ गया इसका असली कारण......गुड्डू के अन्दर की वो ताकत तो नहीं की वो मेले में यु उस लड़की के साथ चलता रहे..!! मैं जानता था उसको.... अन्दर से बहुत कमजोर था वो !!

एक लम्बा अंतराल!!

मैं भी मेले के कुछ और रंग देखने में मशगूल हो गया  ..फिर एक दिन अचानक मेरी नजर ममता पर पड़ी...वो लड़की जो जिन्दगी को अपने दम जीना चाहती थी उसने इसे सिद्ध कर दिया था ...अब तो उसे एक प्यारा सा साथी भी मिल गया था...कद और हस्सियत में गुड्डू से बड़ा...!!

..मैंने ममता  बारे में गुड्डू  को बताया...अब तक उसका गुस्सा ठंडा हो गया था ...शायद उसे देखना चाहता था...मैंने ममता को उसके मन की बात  बताई  ...वो तैयार हो गयी दूर से उसे अपनी सकल दिखाने  को...कुछ शर्तो के साथ..फिर एक दिन  ममता ने दूर से उसे अपना चेहरा दिखा ही दिया ...मैं तब से मौन ये सब देख रहा था...ये क्या हो रहा हैं.... गुड्डू तो  आजाद हो रहा था.... वो दर्द से, जो किसी को  वादा कर के किसी के दर्द को कम नहीं कर पाने से होता हैं  ...लेकिन  ममता क्यू  अपना चेहरा दिखाने को तैयार हो गयी..... शायद थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन गुड्डू ने उसका दर्द बाटा इस लिए....या पता नहीं !!

मेले में घर वाले गुड्डू को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते आ गए ...फिर एक तेज डाट...उसकी जिमेदारियो का....उसके और सारे वादों का जो पहले उसने लोगो से किया हैं !!

अब हँसता हुआ गुड्डू शांत हो गया हैं... किसी से कोई शिकायत नहीं..!! घर वालो के पीछे पीछे जा रहा हैं...उसकी आखे शायद कुछ दुआ मांग रही हैं...ममता के  खुश रहने की...और शायद उसी रूप में अपने जीवनसाथी से मिलने की जैसा वो स्कूल में थी..एकदम बिंदास !! ममता  की आँखे पढने की कोशिश की थी... मैंने... लेकिन पढ़ नहीं पाया...बहुत शांत थी!!

घर वालो की आँखे सवाल पूछ रही हैं....ढेर सारे सबाल..ये जो उसने किया ये घर वालो की डिक्सनरी मे नहीं था ..लेकिन वो कुछ नहीं बोलता...उसे नहीं मालुम उसने गलत किया या नहीं !!
उसका छोटा भाई भी नाराज हैं शायद, उसे गुड्डू के वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ी हैं...छोटा भाई जो  उसे कभी हीरो मानता था ...लेकिन शायद अब नहीं !!
मैं सोच  रहा था उसे देख कर..... शायद अपनी सत्यता सिद्ध करने के लिए इसे  हाराकिरी करनी होगी..!!

आज बहुत दिनों के बाद उससे मिला....शायद शादी हो गयी हैं उसकी....मैंने पूछा नहीं...मैं अब उसके चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था....हमलोगों ने मिल कर एक-एक  सिगरेट  ली और पीते हुए  अपने रास्ते जाने लगे...!!
वैसे गुड्डू ने जिन्दगी की एक बात तो सिखा ही दी ....सारी चीजे तुम्हारे बस में नहीं होती....तुम भगवान् नहीं हो सकते..!!
मैं सिगरेट के अंतिम कश को लेते हुए सोचने लगा बड़े अजीब अजीब से दोस्त हैं मेरे...!!

Thursday, 15 December 2011

अथाह समुन्दर !!

उफ्फ्फ्फ़ !! आज फिर से वही सपना... पता नहीं मुझे एक ही सपना बार-बार क्यों आता हैं... अब तो उस लड़के से लगाब सा हो गया हैं..बिलकुल काला सा तो हैं....देखने मे बिलकुल साधारण...शायद उसके जिद से लगाब हो गया हैं....उसे जयादा तैरना नहीं आता हैं लेकिन वो समुन्दर में मेरे साथ तैरने को चल दिया हैं.....तैरते-तैरते दूर तक आ गया हैं.... अब तो घर वाले सिर्फ उसके लिए दुआ ही मांग सकते हैं...दूर आने के बाद डर उसके चहरे पर साफ़ दिख रही हैं....ऊची-ऊची लहरे उसे अन्दर तक झकजोर रही हैं... उसके नाक से खून भी आने को हैं....लेकिन ये क्या वो तो हस रहा हैं....शायद उसे दर्द नहीं होता या शायद छुपा रहा हैं...उसे डर हैं की सब लोग उस पर हसने न लगे की उसे तैरना नहीं आता.....हाँ शायद यही बात हैं....मुझे लगता हैं की उसे हमेशा से सिखाया गया हैं हमेशा लड़ते रहो....मुझे डर हैं की यह सीख  उसकी जान न ले ले... उसकी आँखे बीच समंदर में सुखी जमीन ढूंढ़ रही हैं.... मैं उसकी हालत देख कर मुस्कुरा रहा हूँ... डर भी रहा हूँ....गुस्सा भी आ रहा हैं....कभी-कभी उसपे प्यार भी आ रहा हैं...ये सब सिर्फ अपने को सिद्ध करने के लिए....ये क्या उसने मदद से भी इनकार कर दिया.....पता नहीं अपने को क्या समझता हैं...किनारे पर प्यारी सी लड़की भी उसका इन्तजार कर रही हैं... लेकिन वापस जाने से इनकार....शायद समंदर में तरते रहना ही उसकी नियति हैं....मुझे नहीं लगता की उसे कोई इनाम की आस हैं.....पता नहीं वो क्या ढून्ढ रहा हैं...शायद अपने होने की वजह..शायद !! पता नहीं.....हमेशा कुछ उधेरबुन चलती रहती हैं उसकी आखो में....!! 

तभी अचानक नींद खुल गयी....ग्लास भर पानी पी कर मैं उसके बारे मे सोचने लगा की मुझे ही ये सपना क्यों आता हैं....!!

Sunday, 11 December 2011

कुछ अन सुलझे धागे

कहने को हैं बहुत कुछ इस लिए चुप रहना उचित हैं....कभी कभी छोटे लड़के को देखता हूँ तो सोचता हूँ... कुछ दिनों के बाद समाज इससे हर चीज की कीमत मांगेगा...माँ, बाप, भाई, बहन, प्रय्शी,बीबी,बच्चे  नोकरी, सब को कुछ न कुछ चाहिए ...फिर इस लड़के को वादा नहीं निभाने का दर्द होगा...क्योकि ये छोटा लड़का सब काम एक साथ कैसे कर सकता हैं...वो कभी इतना बड़ा कैसे हो सकता हैं... फिर ये लड़का झूठा हसना सीख जायेगा....और जिन्दजी भर हँसता रहेगा...दुसरो के लिए....!!