Monday 28 March 2016

गुड्डू का पुल

आज गुड्डू बड़ा परेशान सा था, आज फिर से सेटमैक्स "बागवान" मूवी आ रही थी । मानो उसीमे वो भी जी रहा था। वो टूटे फूटे बर्तन, वो सीढ़ी वाला डॉयलॉग उसे चुभता जा रहा था। 
मुझे उसकी ये हालत देखी नहीं जा रही थी, मैंने पूछ  ही लिया। तुम अपने  को पहले की पीढ़ी में पाते हो या आज की प्रैक्टिकल पीढ़ी में पाते हो। 
वो बड़ी देर तक मुझे घूरता रहा,शायद जबाब सोच रहा था या जबाब देने की उसकी इक्छा  नहीं थी। कुछ देर सोचने के बाद वो बोला की मैं अपने को पूल की तरह पाता हूँ। मैं समझ नहीं पाया, ये पूल का क्या मतलब हैं ?
जिंदगी दो किनारों के बीच चलती हैं , एक किनारा शादी से पहले का एक शादी के बाद का । कोई भी किनारा टुटा तो समझो जिंदगी का तारतम्य टूट जाएगा । 
उसने समझाया तो मैंने सर हिला दिया। 
आगे वो समझाने लगा की दोनों किनारों के बीच एक बड़ा सन्नाटा हैं। दोनों किनारे  आपस में उचाई नापते हैं और सोचते हैं  की उसे उसके होने का महत्त्व सामने वाला किनारा समझता क्यों नहीं हैं। शायद एक दूसरे के होने की वजह से दोनों अनमने हैं। शायद कोई किनारा छूटकारा चाहता हैं इस तानेबाने को संभाले रखने में । 
मैं थोड़ा न समझने के भाव से पूछा की तुम कहा हो, क्या तुम नदी रूपी जीवन हो?
उसने मुस्कुराते हुए जबाब दिया मैं नदी कैसे हो सकता हूँ वो तो जीवन हैं जिसे "मैक्सिमम पोसिब्लिटी" की ओर जाना हैं वो सबको निरंतरता प्रदान करती हैं । 
मैं तो वो पूल हूँ जो दोनों किनारों के बीच संवाद करता हैं  ताकि जीवन की निरंतरता चलती रहे। 
मैं अब समझ रहा था उसकी बातो को, मैंने उससे आगे पूछा की पूल की क्या जरूरत हैं, किनारे तो कही आ जा सकते नहीं । 
वो चुप सा हो गया, वो सोच रहा था संवाद की जरूरत सही में हैं क्या, संबाद कर के दूसरे किनारे की जरूरत को समझाया जा सकता हैं क्या? ये पूल क्यों दोनों के अनमने पन का शिकार हो? पूल पर ये आरोप हमेशा लगता हैं की वो दूसरे किनारे की तरफ जयादा झुका हैं । क्या पूल बिच से टूट जाय तो चलेगा क्या ? पूल का जो भाग जिस किनारे से लगा हैं वो उस किनारे का, किस्सा ही खत्म । लेकिन जीवन की निरंतरता खतरे में पर सकती हैं |

क्या पूल  दो भागो में टूटे तो पूल को दर्द नहीं होगा, पर किनारे को उस दर्द का एहसास कैसे हो सकता हैं । और  ये दर्द का जिम्मेवार कोन हैं, गलती तो पूल की हैं की वो दोनों किनारे की सन्नाटो को मिलाने चला था, दोनों किनारों को मिलाने चला था, भला ये मुंकिन हैं क्या । 
 मैं देख रहा था गुड्डू लगातार सोच के सागर में गोता लगाए जा रहा था, मैं सोच रहा था की वो सचमुच पूल को बिच से तोडने की बात तो नहीं सोच रहा। लेकिन मैंने उससे पूछा नहीं। 
 मैंने देखा की तकलीफ उसके चेहरे पर उभर कर आ रही हैं शायद आँखे भी नम हैं, पर ये क्या उसकी आँखो में तो बदले का भाव आ रहा था । 
मैं मुस्कुराने लगा पूल भला किनारों से कैसे बदला ले सकता हैं, मैं मुस्कुराते हुए अंजाम सोच रहा था "किनारों से बदला लेने की चाहत में जगह जगह से टुटा पूल"। 
मैंने उसके चुपी को तोड़ने के लिए अगला सवाल पूछा । 
ये आज कल की प्रैक्टिकल पीढ़ी पहले की तरह पिछले पीढ़ी की तरह क्यों नहीं सोचती ये सबको यूज़ एंड थ्रो क्यू करती हैं ?क्या प्यार कम हो गया हैं ?
उसने जोर से बोला  नहीं..... ऐसा नहीं हैं इसका कारण लोगो की जरूरतों का बढ़ना हैं और इसकी कीमत सबसे जयादा पिछली पीढ़ी को चुकानी पर रही हैं । 

उसकी आँखों में परेशानी के भाव साफ़ देखे जा सकते थे । पर वो शांत था, पता नहीं क्या था उसके मन में, शायद कोई सोलुशन सोच रहा था । 

मैं उसे उसकी हाल पर छोडते हुए " बागवान"  मूवी  का मजा लेने लगा था ।  

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